Monday, December 20, 2010

चर्चा आम क्यों न हो..


खुराना साहब जीवन के 80 बसन्त देख चुके हैं. देश-विदेश के कई जाने-माने मीडिया संगठनों में काम किया. सोसायटी, कल्चर और पॉलिटिक्स जैसे विषयों की गहरी समझ रखते हैं. पर पिछले कुछ महीनों से शान्त और सौम्य अंदाज़ में बात करने वाले खुराना साहब इन मुद्दों पर बात करते-करते उग्र हो जाते हैं. निराशा, गुस्सा और अवसाद के कई मिले-जुले रूप उनके चेहरे पर दिखायी पड़ने लगते हैं. पिछले कुछ महीनों में हुए घोटालों की लम्बी फेहरिस्त ने उन्हें हिलाकर रख दिया है. कॉमनवेल्थ के दौरान शुरू हुयी ये प्रक्रिया, आदर्श सोसायटी, 2-जी स्पेक्ट्रम सी.वी.सी. की नियुक्ति और फिर नीरा राडिया, ऐसा लग रहा है कि देश में घोटालों और करप्शन का एक दौर सा चल पड़ा है. मेरे कई मित्र और सहकर्मी कहते हैं, कि करप्शन के मुद्दे पर अब कोई बात नहीं करेगा, वो इससे पक चुके हैं. पर खुराना साहब की माने तों हमें इन मुद्दों पर बात करने से बचना नहीं चाहिए. बल्कि वो तो कहते हैं, कि यही सही समय है जब हम करप्शन के खिलाफ आगे आ सकते हैं. देश की प्रगति में दीमक की तरह लग गये इस भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए सभी की अपने स्तर से कुछ न कुछ करने की जरूरत है. वो कहते हैं, हमारे समय में भ्रष्टाचार इतना बड़ा मुद्दा कभी नहीं रहा. छोटे-मोटे करप्शन के केसेज़ होते थे, पर ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि लगातार इतने घोटाले एक के बाद एक परत-दर-परत खुलते जा रहे हैं. करप्शन के खात्मे पर उनका तर्क कुछ निराला जरूर है, मुद्दा जब ज्वलंत हो तो लोगों को साथ जोड़ना ज्यादा आसान होता है. वही सही समय है कि जब कोशिश की जाए, तो करप्शन को जड़ से मिटाया जा सकता है. क्योंकि अभी न तो कोई राजनीतिक दल, न ही कोई भ्रष्ट नेता या अफसर जनता के गुस्से और विरोध के डर से सामने आने की हिम्मत जुटा जायेगा. करप्शन में लिप्त लोग तो यही चाहेंगे कि हम इन मुद्दों के प्रति उदासीन हो जायें इसे एक पकाऊ बातों का दर्जा देकर चुप हो जाएं, और वो अपनी मनमानी करते रहें. एक अहम और रेलिवेन्ट बात और भी है, कि एक आम भारतीय दस से पांच की नौकरी के दौरान कैसे इन सारे मुद्दों से लड़ पायेगा. और जो लोग भ्रष्टाचार के इन मामलों में लिप्त हों, उनकी ताकत और रसूख से लड़ने के लिए क्या एक आम भारतीय कमजोर है? इस पर भी खुराना साहब का तर्क अलग है, कहते हैं, एकता में शक्ति है, ये हम सब जानते हैं, पर उस एकता की शक्ति को इकट्ठा करने के लिए सबसे पहले एक अकेले की जरूरत होती है. और वो एक अकेला कोई भी हो सकता है. मैं आप या कोई भी 10 से 5 की नौकरी वाला आम भारतीय. भई अपने कलाम साहब भी तो यही कहते हैं कि शुरुआत हर घर से होनी चाहिए. मेहता साहब बोले कि हो सकता है कि बातें बड़ी-बड़ी और किताबी लग रही हों, पर सच तो यही है. क्योंकि जिस दिन हम सचेत होंगे उसी दिन से ये कारवां बढ़ जायेगा. सचेत हर कदम पर अपने राजनेता चुनने में और उसे करप्शन की इस राह में जाने से बचाने में ये सारी चीजें हमारे हाथ में है, सचमुच हमारे हाथों में. ये बात सच है, कि करप्शन का कोई दौर, कोई समय नहीं होता. लेकिन जिस समय हम अपनी निजी चीजों में उलझकर अपने सामाजिक दायित्वों से भागने लगते हैं, उस समय में ये चीजें तेजी से बढ़ने लगती हैं. यही आजकल हो रहा है. खुराना साहब के समय में तो करप्शन कम था, पर उन लोगों में इससे लड़ने का जज्बा तो था, शायद हमारे दौर में जज्बे की कमी है. जबकि हमारी पीढ़ी कहीं अधिक पढ़ी-लिखी, जागरूक और सक्षम है. इंटरनेट के इस युग में किसी भी मुद्दे पर नेटवर्क बनाना और लोगों तक अपनी बात पहुंचाना कठिन नहीं है और शुरुआत कभी भी की जा सकती है शायद अभी से.
http://inext.co.in/epaper/inextDefault.aspx?pageno=16&editioncode=2&edate=12/21/2010