Wednesday, September 29, 2010

अयोध्या विवाद पर मेरी एक छोटी सी कविता



ये मंदिर किसलिए ,ये मस्जिद किसलिए 
बना रहे भाईचारा ये इमारतें है इस लिए 
क्यों सोचते है हम  ज़रा तल्ख़ ज़हेन से
जब प्यार बड़ा है जहाँ मे चुभन से  
मंदिर बड़ा नहीं या मस्जिद बड़ी नहीं 
अमानत रहे ये बच्चे , सब रहे अमन से ,
रोटी बड़ी है जिन्दगी मे इबादत से मेरे दोस्त 
और ये दोस्ती बड़ी है अदावत से मेरे दोस्त 

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