Wednesday, September 29, 2010

अयोध्या विवाद पर मेरी एक छोटी सी कविता



ये मंदिर किसलिए ,ये मस्जिद किसलिए 
बना रहे भाईचारा ये इमारतें है इस लिए 
क्यों सोचते है हम  ज़रा तल्ख़ ज़हेन से
जब प्यार बड़ा है जहाँ मे चुभन से  
मंदिर बड़ा नहीं या मस्जिद बड़ी नहीं 
अमानत रहे ये बच्चे , सब रहे अमन से ,
रोटी बड़ी है जिन्दगी मे इबादत से मेरे दोस्त 
और ये दोस्ती बड़ी है अदावत से मेरे दोस्त 

Monday, September 27, 2010

लम्बे समय बाद रंगमंच पर मै ...



जेसे पंछी उडी जहाज को फिर जहाज पर आवे उसी तरह लम्बे अन्तराल के बाद आज फिर मैंने रंग-मंच पर दोबारा कदम रखा ,सब कुछ पुराने दिनों की तरह से ही है वो मेकअप ,कॉस्टयूम ,लाइट,सेट और फिर तालियों की गडगडाहट ...सच-मुच कुछ अलग है ये दुनिया ....और मैंने इसे बड़ा मिस किया.

Sunday, September 5, 2010

कई साल पहले


कई साल पहले ,
किसी ने कुछ उलटी-सीढ़ी ,आड़ी-तिरछी रेख़वों के नाम बताये
फिर उन आकृतिओं मे खुद को पहचानने की कला सिखाई
मै बड़ा होता गया और उस सख्स का चेहरा भी बदलता गया
साथ साथ उन आकृतिओं की मानी भी
वो सेलेट और चाक से उठ कर कागज पर आ गाए और फिर कंप्यूटर
के पर्दों पर ...
पर उस सख्स और उसके सभी चेहरों मे मेरा भगवान बस गया ....
उस भगवान और उसके सभी रूपों के मेरा सत् -सत् नमन ..