Wednesday, May 20, 2009

नज़रिया नया-नया सा


मूल लेख हेतु लिंक -
http://www.inext.co.in/epaper/Default.aspx?pageno=16&editioncode=3&edate=5/21/2009




आजकल रोहन के पापा उसके सेलफोन पर लगे रिंगटोन को सुनकर सिर्फ मुस्कुरा देते हैं. कौन सी है वो रिंगटोन..कण्डोम..कण्डोम.. हां, सचमुच अब वे नाराज नहीं होते बल्कि मुस्कुरा देते हैं. उनका ऩजरिया बदल गया है, वरना पांच साल पहले तक टीवी पर ऐसे ऐड आते ही वो चैनल चेंज करने की कवायद में जुट जाते थे. पर आज हमारे एडवर्टाइजिंग व‌र्ल्ड ने उन्हें बदलती सोसायटी और उसकी जरूरतों को समझने में सक्षम बना दिया है. उन्हें पता है जानकारी ही बचाव है और उन्हें इस जानकारी को बांटने में कोई गुरेज नहीं. जी हां, बदल गया है हमारा एडवर्टाइजिंग व‌र्ल्ड अब वो सिर्फ अपना प्रोडक्ट नहीं बेचता हमारे सपने, हमारी जरूरतों को भी बेचता है. हां मैं अलग थी, हां मैं उड़ना चाहती थी. एक एयरहोस्टेस ट्रेनिंग इंस्टीटट्यूट के इस विज्ञापन ने गोरखपुर के एक छोटे से कस्बे में रहने वाली श्रद्धा को हौसला दिया एयरहोस्टेस बनने का. उसने घरवालों को कन्विंस किया पापा की नाराजगी सही और चली आयी अपने सपनों को लेकर महानगर में. आज वो एयरहोस्टेस तो न बन सकी, पर एक कॉल सेंटर में जॉब करती है और एमबीए के लिए प्रिपरेशन कर रही है, कहती है, मैं खुश हूं. अपनी दुनिया खुद बनाऊंगी. घरवाले भी साथ हैं, इस मदर्स डे पर जब मम्मी के लिए गिफ्ट लेकर घर गयी तो उनकी आंखें भर आयीं, एकदम फिल्मी स्टाइल में. उस विज्ञापन ने श्रद्धा के सपने पूरे तो नहीं किये, लेकिन बड़े जरूर कर दिये. ये बात सिर्फ कस्बे में रहने वाली उस लड़की की नहीं हमारा आज का विज्ञापन जगत हमारी भावनाओं, परंपराओं, हमारी सोच को एक नया रंग दे रहा है और सबसे इंपॉटर्ेंट यह है कि ये रंग झूठे नहीं, इनमें वो बात है जो हमें कुछ करने को प्रेरित करती है. आपको याद होगा, एक टेलीकॉम कम्पनी का वो विज्ञापन जिसमें नेता जी कुछ भी करने से पहले जनता की राय लेना नहीं भूलती थीं. खेतों में शॉपिंग मॉल होना चाहिए या नहीं, पॉलिथीन का प्रयोग बंद होना चाहिए या नहीं इन सारे मुद्दों पर नेता जी जनता से बात करती थीं. सोशल और पॉलिटिकल चेंज की बात करने वाले इस विज्ञापन ने चुनावों से पहले लोगों के बीच अवेयरनेस का बेहतरीन काम किया. इसी श्रेणी में एक प्रतिष्ठित टी कंपनी के विज्ञापन ने हमसे जागने और वोट करने की गुजारिश की. उसने जरूर कहीं न कहीं असर दिखाया और युवाओं ने इस इलेक्शन के दौरान वोटिंग में बढ़-चढ़ कर पार्टिसिपेट किया. यह एक पॉजिटिव चेंज है, तो शायद उन लोगों को करारा जवाब है जो यह कहते थे कि विज्ञापन सिर्फ अपने प्रोडक्ट बेचने के लिए नये-नये हथकंडों या अश्लीलता का सहारा लेते हैं. जिन चीजों की सोशल एक्सपेप्टेंस हो रही है, विज्ञापन जगत को उसे दिखाने में कोई झिझक नहीं. इमरजेन्सी कॉन्टिसेप्टिव पिल्स के एक एड में प्री-मेरिटल सेक्स सही है या गलत इस बहस में न फंसकर सेफ सेक्स की बात को हाईलाइट किया है. शायद यह एक बड़े बदलाव का इशारा है. अभी हालिया दिनों में एक एसी निर्माता कंपनी ने अपने विज्ञापन में बिजली बचाने की अपील की. उसके हिसाब से अगर आप उस कंपनी का एसी लगाते हैं तो बिजली की बचत होगी. जिससे अंधेरे गांव में रह रहे लोगों की जिंदगी में उजाला आयेगा. हालांकि इस तरह अपने प्रोडक्ट के प्रमोशन के साथ-साथ सोशल अवेयरनेस फैलाना काफी कठिन काम होता है खुद विज्ञापन जगत से जुड़े होने के कारण मुझे इस बात का बखूबी अंदाजा है कि विज्ञापन एजेंसियों पर प्रोडक्ट प्रमोशन का कितना दबाव होता है लेकिन ऐसे में सोशल अवेयरनेस को उसके साथ जोड़ने वाले क्रिएटिव लोग सचमुच बधाई के पात्र हैं एडवर्टाइजिंग व‌र्ल्ड में ये एक नये दौर की शुरुआत है. जिसे मैं सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी) की तर्ज पर एएसआर (एडवरटाइजिंग सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी) का नाम देना पसंद करूंगा और फर्क इस बात का कि हमारे एडवर्टाइजिंग व‌र्ल्ड ने इसकी उम्दा शुरुआत की है.

No comments: